जितना तुम्हे सवारने की कोशिश की,उतना ही तुम बिखर जाती हो,
ये ज़िन्दगी मुझे ज़रा बताओ, क्यो रेत सी मेरे हाथो से तुम छूट जाती हो |
रोज कोशिशे करता हु तुम्हे सिरहाने रख पाने की,
पर न जाने क्या तुम्हारी नियत है, रोज उड़ जाने की ,
न चाहता हु तुम्हे काबू करना, ना ज़रूरत समझी कभी तुम्हे बरगलने की |
हर रोज बनती हो, रोज बिगङती हो,
हर रोज तुम्हे ज़रूरत है, नया फलक दिखलने की ,
हर रोज नया रंग, नया रूप देखा,
वो भी देखा;जो कभी नही सोचा था तुमसे पाने की |
फिर भी; फिर भी…ना कभी तुम से उबा, न ही थका,
न ही कभी कोशिश की तुमसे दूर जाने की ,
कभी फ़ुर्सत मिले तुम्हे;
आओ ज़िंदगी कभी मेरे पास, मेरे आगोश मे,
कुछ बाते है तुमसे समझने और समझाने की |
इंतेज़ार मे हू तुम्हारे,
क्यो की फ़ितरत है मेरी सवरने की और तुम्हारी बनाने की…|
©Abhishek Yadav 2015
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