सोचता ही रह गया सारी ज़िन्दगी की मेरे भी दिन आयेगे , जब आयेगे तो लोग देखते रह जायेगे ,
न होगा कोई ओऱ छोर, होगे जगमग बादल चारो ओऱ ,
दीये उम्मीदों को टीम टिमटिमाये गे, मुस्कान के फूल लहलहाए गे ,
जो ख्वाब देखा था सब पूरे हो जायेगे |
पीछे देखता हुँ, तो बस पता हुँ अधूरे ख्वाब, टूटी उम्मीदे और सिसकते आप ,
चाह कर भी न पाया खुशियो की डोर ,पर फसा पाया खुद को हर ओऱ ,
पैबंद लगी उम्मीदों से क्या ज़िन्दगी गुजार पाउँगा ,सोचता हुँ की शायद कर ही न पाउँगा |
कोई साथ नहीं अब मेरे, सब चले गए अपनी – अपनी ओऱ , मै मझ धार जहाँ से न कोई ओऱ छोर ,
क्या करू ..? क्या विलाप करू ..?, या करू ब्रह्म हत्या,
कैसे खुद को मुक्त कराउ, कैसे उम्मीदों की चुभन से खुद को बचाऊ ,
शायद यही है अंत मेरा और ऐसे ही मै विश्व को अपनी कथा सुनाऊ |
तभी आत्मा बोली ” मुर्ख क्यों बिखरते जाते हो ..? क्यों प्रारम्भ में ही अंत को बुलाते हो,
क्या हुआ जो तुम्हारे स्वप्नों की हुई आहुति , क्या हुआ जो तेरी अभिलाषाओ की न हुई इतिश्री,
क्यों घबराते हो , न कुछ खोया, न कुछ पाया , तो फिर क्यों विलाप करते जाते हो ,
उठो और नव दिवस में,नया विकासः करो , नए दिन से ने स्वप्न का आभाष करो |
टूटे दिल में धार नहीं होती, और लड़ने वालो की हर नहीं होती |
जाओ , जो न मिला उसे भूल जाओ , जो मिल सकता है उसे ले कर आओ |
हार गए तो भी योद्धा कहलाओगे , गर जीत गए तो जो चाहा था पा जाओगे |
तब अब मुस्कुराओ और फिर लड़ने जाओ |”
अति सुन्दर
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धन्यवाद .. पास आप लोगो का स्नेह हे मेरी प्रेरणा है.
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