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ख्याल

​क्या बेबसी है मेरी, सारा जहान सुन सकता है मुझे,

सिवा तेरे।

जिसके लिए बया ये दास्ताँ है।

गर महसूस हवा में नमी सी हो, तो समझना 

कोई कही परेसा, सा है।

लफ्जो की खाई है दोनों के बीच,

पर ये ना समझना ,ये दरिया जमा सा है।

मुझ सुखी चट्टान पर मत जाना,

इनके नीचे लावा आज बहा सा है।

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