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मेरी गुल्लक

मेरी गुल्लक
मेरी गुल्लक

बड़ी इच्छा से रखी थी मैंने एक गुल्लक मेरी ,

सपनो की कौड़िया जोड़,

कुछ तारो को तोड़,

कुछ उम्मीदों के करारे नोट मोड़,

कुछ गलतियों के खोटे सिक्के खंगोड़,

बड़ी मेहनत, चाहत से अपने सपनो की पूंजी जोड़ी |

 

 

वक़्त बिता,

सपने पलते  गये, गुल्लक भारी होती गयी,

सालो बिताये मैंने,

ख्वाब जोड़ते ,तंग-हाथ अरमान मरोड़ते,

दशको बाद मैंने अपनी गुल्लक तोड़ी,

बड़े चाव से, सोचा चलो , गिनु  मेरे  सपनों को,

मैं काँपा, सकपकाया ,कुछ घबराया ,कुछ लजाया और फिर मुस्कुराया |

 

ख्वाब तो मेरे उतने ही थे , जितने मैंने अपनी आँखों में सजोये थे,

वो उतने ही रुपहले , सुर्ख ,अनोखे थे , जितना मैंने रख छोड़े थे,

बदला था तो, वक़्त बदला , मैं बदला , था बदला मेरे सपनो का दायरा बदला |

 

अब मुट्ठी  भर, कोरे सपनों से कुछ नहीं मिलता,

दुनिया अब मँहगी हो चुकी है , अब महंगे  सपनों चाहिए,

अब फिर से मैंने गुल्लक खरीदी है,

बड़ी वाली,

ताकि और महँगे, बड़े सपने रख सकु अपने पास,

ताकि अगली बार फिर से मेरे सपने कम कीमत के न रह जाये,

हाँ मैंने बड़ी वाली गुल्लक ख़रीदी है |

 

 

© Abhishek Yadav 2015

Image source – www.google.co.in

3 thoughts on “मेरी गुल्लक

  1. Your dedication, enthusiasm and insight are really inspiring. I wish you many years of great achievement

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