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मेरी ज़िन्दगी

मेरी ज़िन्दगी...
मेरी ज़िन्दगी…

अच्छा लगा तुम से मिल कर ज़िन्दगी |

काफी दिनों बाद कोई अपना मिला ,

कोई नहीं बचा मेरा , ये सोच,सोच कर जिए जा रहे थे,

और गमो को जिगर में सीये जा रहे थे |

अपनी राह पर खुद को लिए जा रहे थे ,

और पैबन्द भरी खुशियो को , जमा किये जा रहे थे |

पर तुम को देख कर आंसू खिल गए ,

आत्मा और दिल मिल गए |

तुम दिव्य हो, दिव्यात्मा , या फिर मेरी आत्मा |

पता नहीं तुम कौन हो , कहाँ से आई , कहाँ को जाओगी,

पर पता है ,

जब तक रहोगी खुद हसोगी और मुझे खिलखिलाओगी|

तुम कहाँ थी ज़िन्दगी …?

अब कही मत जाना , हो सके तो रुक जाओ ,

मेरी बस्ती को कुछ वक़्त ही सही अपनाओ |

फिर चली भी जाओगी तो कोई गम नहीं ,

ये एहसास तो होगा और याद भी होगा ,

की, कभी मैने भी जीयी थी ज़िन्दगी |

Hope-vs-Faith

© Abhishek Yadav 2015

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