अच्छा लगा तुम से मिल कर ज़िन्दगी |
काफी दिनों बाद कोई अपना मिला ,
कोई नहीं बचा मेरा , ये सोच,सोच कर जिए जा रहे थे,
और गमो को जिगर में सीये जा रहे थे |
अपनी राह पर खुद को लिए जा रहे थे ,
और पैबन्द भरी खुशियो को , जमा किये जा रहे थे |
पर तुम को देख कर आंसू खिल गए ,
आत्मा और दिल मिल गए |
तुम दिव्य हो, दिव्यात्मा , या फिर मेरी आत्मा |
पता नहीं तुम कौन हो , कहाँ से आई , कहाँ को जाओगी,
पर पता है ,
जब तक रहोगी खुद हसोगी और मुझे खिलखिलाओगी|
तुम कहाँ थी ज़िन्दगी …?
अब कही मत जाना , हो सके तो रुक जाओ ,
मेरी बस्ती को कुछ वक़्त ही सही अपनाओ |
फिर चली भी जाओगी तो कोई गम नहीं ,
ये एहसास तो होगा और याद भी होगा ,
की, कभी मैने भी जीयी थी ज़िन्दगी |
© Abhishek Yadav 2015
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